Tuesday, September 1, 2009

हाल-ऐ-दिल

कोई तो सबब होगा उनका रूठ जाने का
ख़त्म जो हो गया है सिलसिला ज़माने का!!

गैर के पहलु मे सरे बज्म सज़े बैठे है
अंदाज़ दिलकश निकला है हमे जलाने का !!

घर से निकले थे ले के दिल मे आरजू - ए- शमा
जल गए खाक मे नतीजा है दिल लगाने का !!

अब किसी से नहीं उम्मीद-ए-वफ़ा क्या जीना
इंतजार बेकार है महबूब अब उनके आने का !!
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तेरी सांसो की महक आज भी महकाती है !
गुजरे लम्हों की हर याद यु चली आती है !

ऐ गुल हसंना मन है मेरे जख्मों पर,
उनकी नाज़ों अदा गज़ब ढाती है !

खिला करते थे जहाँ फूल कभी उल्फत के ,
ग़म की परछाई उसी गुलशन में मुस्काती है !

उम्मीद-ऐ-वफ़ा के दमन को संभाले रखना ऐ "महबूब",
सुना है सच्ची मोहोब्त मिल भी जाती है !

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इक उल्फत ही गुनाह फक्त करता है आदमी !
ता जिंदगी फिर किस किस से लड़ता है आदमी !!

कभी आंसू कभी आहे कभी फरियाद और सिसकी
क़यामत के दौर से यु गुजरता है आदमी !!

दुनिया के हादसों को तोह सह भी ले कोई
खा के अपनों से चोट बिखरता है आदमी !!

तेरी फुरकत मे भी जिन्दा है आके देख ले ऐ "महबूब"
कौन कहता है निकले रूह तोह मरता है आदमी !!

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रहमत की हर बशर को दौलत नही मिलती
मनचाही महबूबा किसी को मोह्होबत नही मिलती !

वो और थे जो राहे-इश्क मे तारीख बना गए
लैला-मजनू सी नई नस्ल मे चाहत नही मिलती !

बदल गए दस्तूर-और-रस्म-ओ-रिवाज़ भी
ढूंढे से भी किसी मे नजाकत नही मिलती !!

उनको रहती है मिलने की शिकायत हमेशा
क्या करे "महबूब" हुस्न वालो से अपनी तबीयत नही मिलती !!!

3 comments:

  1. Wah! Wah! Shaandaar mere dost! ...hum to kayal hein aapke har hunar ke...

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  2. wah kya baat hai
    Dil chir k rakh diya bhai
    mera dil to challang maar k bahaar nikal ne wala
    tha.
    wo to mainE sahi waqt pe samhal liya
    warna..............
    pata nai kya hota..............

    ReplyDelete

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