आखिर जिम्मेदार कौन ??
बलात्कार हो गया , बलात्कार हो गया ..
हल्ला मचाये हुए हो , कोई मोमबत्ती लेकर सडको पर दौड़ रहा है , तो कोई फेसबुक पर बलात्कारियो के लिए अलग अलग तरह की सजा सुझा रहा है , कोई बलात्कारी को कोसता है तो कोई सरकार को तो कोई पुलिस को ,
वही मिडिया इस मामले को इतना भुना रही है जैसे उनके कहने पर कोर्ट अपना फैसला बदलने वाला है ..
जब कहते थे की ठीक से कपडे पहनो, अश्लीलता मत फैलाओ तो समाज के आधुनिक युवा कहते थे तुम्हे किसने ठेकदार बना दिया , अपनी मानसीकता सुधारों तो बलात्कार नहीं होगा , सही भी है पर मानसिकता सुधरे कैसे और बिगड़ी कैसे थी इस पर विचार किया जाना चाहिए|
अब ४-५ साल की बच्ची तो रात में छोटे कपडे पहन कर पब में शराब का ग्लास हाथ में लिए नाच कर बलात्कारियो को नहीं उकसाती होगी ..फिर भी बलात्कार हो रहे है, इन घटनाओं ने मर्दों को फिर से कटघरे में खड़ा कर दिया और कपड़ो के बारे में जनचेतना फैलाने वालो के विरुद्ध सभी आधुनिक लोगो को कटाक्ष करने का मौका मिल गया, सभी बुद्धिजीवी मर्द की हवास को आरोपी बता रहे है, महिलाओं के खिलाफ बोले भी कैसे, हज़ारो क़ानून बने है जिनसे महिलाओं के खिलाफ कुछ बोलते ही वारंट जारी हो जाता है |
सच कहे तो कथित बुद्धिजीवियों द्वारा वास्तविक स्त्री अधिकारों की बजाय feminism के नाम पर जहरीला कचरा फैलाया जा रहा है, जो की पुरुषो को नीचा गिराने के लिए पर्याप्त है | यह कचरा स्त्री को उनकी ही जड़ों के विरुद्ध खड़ा करना चाहता है। चाहता है कि वो अपने धर्म से, संस्कृति से, यहाँ तक कि स्त्रीत्व से दूर हो जाए । वे अपने धर्म से घृणा करे, अपनी विशेषताओं से, अपने प्राकृतिक स्वभाव तथा अपने स्त्री होने से घृणा करे और एक पुरुष की अधकचरी प्रतिकृति मात्र हो जाए।
समझ नहीं आता स्त्री क्यों अपने अधिकारों की मांग पुरुषो से कर रही है, क्या स्त्री गुलाम है ?? मानव और विशेषतः एक नारी के रूप मे स्त्री को अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु किसी उधार के आधे-अधूरे महिलावाद की आवश्यकता कहाँ है?
सुरक्षा और सभ्य समाज के समर्थन में मोमबत्ती जला आती हैं हर न्यूज़ चैनल पर बयान देती हैं कि हम असुरक्षित हैं किन्तु इसी नारीत्व की जब खुद प्रदर्शनी करती हो तब क्या इसका अपमान नहीं होता? जब नारी को परदे पर भोग की वस्तु दिखाया जाता है, हर विज्ञापन में , हर फिल्म में नारी को एक सेक्स सामग्री की तरह उपयोग में लिया जाता है तब क्यों नहीं जलाई जाती मोमबत्ती ??
आधुनिक मर्द महिला को भोग की वस्तु समझते है और वही आधुनिक महिलाए इसका विरोध ना कर खुद को भोग की वस्तु की तरह प्रदर्षित करती है , जो गलती सिर्फ मर्दों की कैसे ?
माना उस पांच साल की बच्ची का उसमे कोई दोष नहीं , पर उस बलात्कारी को बलात्कार करने के लिए उकसाने वाला कौन है ? क्या सिर्फ बलात्कार करने पर सजा होनी चाहिए ? उकसाने के लिए कोई सजा नहीं .. दुसरे पहलु को हमेशा मीडिया , सरकार और जनता द्वारा नजर-अंदाज क्यों कर दिया जाता है ?
देखा जाए तो बलात्कार में सिर्फ एक बलात्कारी ही जिम्मेदार नहीं होता, वह सभी भी होते है जिनकी वजह से बलात्कारी ने इस अपराध को अंजाम दिया |
यह सभी जानते है खुद को आधुनिक कहने वाली लडकियों के विचार कैसे है , पार्क , माल्स , सिनेमा आदि जगह खुल्लेआम अश्लीलता किस तरह फैलाइ जाती है , और इस बात पर नारी अपनी आजादी कहती है , अब क्या यह संभव नहीं की उन्हें देख कर किसी का मन कुंठित हो जाए, उन्हें पा नहीं सकता पर कामुकता तो उन लड़के लडकियों द्वारा ही परोसी गयी बलात्कारी के मन में , कामुकता के नशे में वो किसी को भी अपनी हवास का शिकार बना सकता है तो बलात्कारी के साथ वो युवतिया जो छोटे कपडे पहन या अश्लील व्यहवार कर किसी की कामुकता को जाग्रत कर बलात्कार करने पर उकसाती हो वो भी बलात्कार की जिम्मेदार नहीं है ??
टीवी न्यज , सीरियल , विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली अश्लीलता जिसका समर्थन और सहयोग खुद स्त्री करती है क्या वो सब जिम्मेदार नहीं है ? जब किसी फिल्म में बलात्कार की घटना दिखाई जाती है तब उसका विरोध क्यों नहीं किया जाता है ??
सन्नी लियोने, पूनम पण्डे , मल्लिका शेरावत जिस देश की महिलाओं की रोल मॉडल बन जाए उस देश में बलात्कार नहीं होंगे तो क्या होंगे| नारी का बलात्कार इतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना बड़ा नारीत्व का बलात्कार है , नारीत्व का बलात्कार हर रोज होता है जो की नारी के बलात्कार को बढ़ावा देता है, फिर भी सभी पत्ते काटने में लगे है कोई इस चीज की जड़ काटने की नहीं सोचता , जो सोचता है उसको रूडिवादी कह कर नकार दिया जाता है|
घटनाओं पर घडियाली आसूं बहाते हुए नेता टिपण्णी करते है की उन्हें दुःख है, पर कोई कानून नहीं बनाए , बॉलीवुड के सभी लोग टिपण्णी करते है पर अश्लीलता परोसना बंद नहीं करते , जो करना है आपको और हमें ही करना है, पोर्न,छोटे वस्त्र, अश्लीलता , कामुक पुस्तके , अखबारो में छपी कामुक तस्वीरे , सभी का सम्पूर्ण बहिष्कार करो , मोमबत्ती जलानी है तो इनके विरोध में जलाओ |
बलात्कार हो गया , बलात्कार हो गया ..
हल्ला मचाये हुए हो , कोई मोमबत्ती लेकर सडको पर दौड़ रहा है , तो कोई फेसबुक पर बलात्कारियो के लिए अलग अलग तरह की सजा सुझा रहा है , कोई बलात्कारी को कोसता है तो कोई सरकार को तो कोई पुलिस को ,
वही मिडिया इस मामले को इतना भुना रही है जैसे उनके कहने पर कोर्ट अपना फैसला बदलने वाला है ..
जब कहते थे की ठीक से कपडे पहनो, अश्लीलता मत फैलाओ तो समाज के आधुनिक युवा कहते थे तुम्हे किसने ठेकदार बना दिया , अपनी मानसीकता सुधारों तो बलात्कार नहीं होगा , सही भी है पर मानसिकता सुधरे कैसे और बिगड़ी कैसे थी इस पर विचार किया जाना चाहिए|
अब ४-५ साल की बच्ची तो रात में छोटे कपडे पहन कर पब में शराब का ग्लास हाथ में लिए नाच कर बलात्कारियो को नहीं उकसाती होगी ..फिर भी बलात्कार हो रहे है, इन घटनाओं ने मर्दों को फिर से कटघरे में खड़ा कर दिया और कपड़ो के बारे में जनचेतना फैलाने वालो के विरुद्ध सभी आधुनिक लोगो को कटाक्ष करने का मौका मिल गया, सभी बुद्धिजीवी मर्द की हवास को आरोपी बता रहे है, महिलाओं के खिलाफ बोले भी कैसे, हज़ारो क़ानून बने है जिनसे महिलाओं के खिलाफ कुछ बोलते ही वारंट जारी हो जाता है |
सच कहे तो कथित बुद्धिजीवियों द्वारा वास्तविक स्त्री अधिकारों की बजाय feminism के नाम पर जहरीला कचरा फैलाया जा रहा है, जो की पुरुषो को नीचा गिराने के लिए पर्याप्त है | यह कचरा स्त्री को उनकी ही जड़ों के विरुद्ध खड़ा करना चाहता है। चाहता है कि वो अपने धर्म से, संस्कृति से, यहाँ तक कि स्त्रीत्व से दूर हो जाए । वे अपने धर्म से घृणा करे, अपनी विशेषताओं से, अपने प्राकृतिक स्वभाव तथा अपने स्त्री होने से घृणा करे और एक पुरुष की अधकचरी प्रतिकृति मात्र हो जाए।
समझ नहीं आता स्त्री क्यों अपने अधिकारों की मांग पुरुषो से कर रही है, क्या स्त्री गुलाम है ?? मानव और विशेषतः एक नारी के रूप मे स्त्री को अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु किसी उधार के आधे-अधूरे महिलावाद की आवश्यकता कहाँ है?
सुरक्षा और सभ्य समाज के समर्थन में मोमबत्ती जला आती हैं हर न्यूज़ चैनल पर बयान देती हैं कि हम असुरक्षित हैं किन्तु इसी नारीत्व की जब खुद प्रदर्शनी करती हो तब क्या इसका अपमान नहीं होता? जब नारी को परदे पर भोग की वस्तु दिखाया जाता है, हर विज्ञापन में , हर फिल्म में नारी को एक सेक्स सामग्री की तरह उपयोग में लिया जाता है तब क्यों नहीं जलाई जाती मोमबत्ती ??
आधुनिक मर्द महिला को भोग की वस्तु समझते है और वही आधुनिक महिलाए इसका विरोध ना कर खुद को भोग की वस्तु की तरह प्रदर्षित करती है , जो गलती सिर्फ मर्दों की कैसे ?
माना उस पांच साल की बच्ची का उसमे कोई दोष नहीं , पर उस बलात्कारी को बलात्कार करने के लिए उकसाने वाला कौन है ? क्या सिर्फ बलात्कार करने पर सजा होनी चाहिए ? उकसाने के लिए कोई सजा नहीं .. दुसरे पहलु को हमेशा मीडिया , सरकार और जनता द्वारा नजर-अंदाज क्यों कर दिया जाता है ?
देखा जाए तो बलात्कार में सिर्फ एक बलात्कारी ही जिम्मेदार नहीं होता, वह सभी भी होते है जिनकी वजह से बलात्कारी ने इस अपराध को अंजाम दिया |
यह सभी जानते है खुद को आधुनिक कहने वाली लडकियों के विचार कैसे है , पार्क , माल्स , सिनेमा आदि जगह खुल्लेआम अश्लीलता किस तरह फैलाइ जाती है , और इस बात पर नारी अपनी आजादी कहती है , अब क्या यह संभव नहीं की उन्हें देख कर किसी का मन कुंठित हो जाए, उन्हें पा नहीं सकता पर कामुकता तो उन लड़के लडकियों द्वारा ही परोसी गयी बलात्कारी के मन में , कामुकता के नशे में वो किसी को भी अपनी हवास का शिकार बना सकता है तो बलात्कारी के साथ वो युवतिया जो छोटे कपडे पहन या अश्लील व्यहवार कर किसी की कामुकता को जाग्रत कर बलात्कार करने पर उकसाती हो वो भी बलात्कार की जिम्मेदार नहीं है ??
टीवी न्यज , सीरियल , विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली अश्लीलता जिसका समर्थन और सहयोग खुद स्त्री करती है क्या वो सब जिम्मेदार नहीं है ? जब किसी फिल्म में बलात्कार की घटना दिखाई जाती है तब उसका विरोध क्यों नहीं किया जाता है ??
सन्नी लियोने, पूनम पण्डे , मल्लिका शेरावत जिस देश की महिलाओं की रोल मॉडल बन जाए उस देश में बलात्कार नहीं होंगे तो क्या होंगे| नारी का बलात्कार इतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना बड़ा नारीत्व का बलात्कार है , नारीत्व का बलात्कार हर रोज होता है जो की नारी के बलात्कार को बढ़ावा देता है, फिर भी सभी पत्ते काटने में लगे है कोई इस चीज की जड़ काटने की नहीं सोचता , जो सोचता है उसको रूडिवादी कह कर नकार दिया जाता है|
घटनाओं पर घडियाली आसूं बहाते हुए नेता टिपण्णी करते है की उन्हें दुःख है, पर कोई कानून नहीं बनाए , बॉलीवुड के सभी लोग टिपण्णी करते है पर अश्लीलता परोसना बंद नहीं करते , जो करना है आपको और हमें ही करना है, पोर्न,छोटे वस्त्र, अश्लीलता , कामुक पुस्तके , अखबारो में छपी कामुक तस्वीरे , सभी का सम्पूर्ण बहिष्कार करो , मोमबत्ती जलानी है तो इनके विरोध में जलाओ |
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